Saturday 9 May 2020

युग कथा-१

इन्स्टा, ट्विटर, टिकटाक, यूट्यूब की ओर देख जब फेसबुक को देखता हूँ, तो मुझे ये गोला बड़ा ही विचित्र लगता है!

हैं? सब के सब सन्त? हुकम मान लो इब...जुकरवा कतई कन्फ्यूज ही होगा! हिमालय गया नहीं, कोई मनौती माँगी नहीं, रोजा-नमाज किया नहीं कि या खुदा...पूत दो तो लायक देना, नालायक तो भतेरे हैं! फिर भी यह गति? तीनि में नऽ तेरऽ में?

ऐसा नहीं कि यह गोला सदा से ऐसा ही था। किन्तु कन्याओं के इनबॉक्स में महीने में ९०० बार हाय लिखने वाले भी सर्वप्रथम यहीं पेपच करते पाए गए थे‌। गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग से लेकर चाणक्य तक से ब्रह्माण्ड को इन्होंने ही परिचित करवाया। व्हाट्स एप वाले इस प्रजाति से बाद में त्रस्त हुए। याहू, बिग अड्डा, ऑरकुट, रेडिट, ब्लॉगर, गूगल प्लस आदि तो मर मरा गए मितरों इतने प्रेम पाने की आकांक्षा में ही! ये अलग बात है कि उनमें से कुछ की साँसे अभी भी चल रही हैं‌ चाहें वेन्टिलेटर पर ही सही!

वैसे हम उस समय के साक्षी भी हैं जब ९९९/- का केवल इनकमिंग वैलिडिटी प्लान था! आज के निब्बा निब्बियों का दम तो इसी बात से निकल जाता कि एक मैसेज पैक डलवाने के लिए महीने में कितने दिन बर्गर, गोलगप्पे व मॉल, सिनेमा से दूर रहना पड़ सकता था!

खैर, गर्व इस बात का हो सकता है इस गोले वालों को कि वो चरस जो आज पूरी दुनिया में फैली है, उन सबका रामाधीर सिंह अपना यही फेसबुक है! आइडियाज तो वैसे गूगल ने भी कम नहीं आजमाए, पर जो आग, जो शोखी इस फेसबुक के हुस्न में थी वो कहीं न दिखी! लतखोरी के भी ऐसे ऐसे आयामों तक की यात्रा मनुष्य जाति ने यहाँ की, कि थैनोस व उसकी सेना की हनक और लुच्चई-लम्पटई भी इनके आगे पानी भरे!

किन्तु युग बदला, परिस्थितियाँ बदलीं और बदल गया मनुष्य भी! दण्ड कमण्डल लिए कुछ महापुरुषों ने इस ग्रह को ऐसा शाप दिया कि चैम्पियन्स की सारी बकैती हवा हो गयी। देवर्षि नारद ने रत्नाकर को भी क्या समझाया होगा जो यहाँ के देवर्षियों ने फेसबुकिया समाज को समझाया। सारे रत्नाकर धुँआधार संख्या में वाल्मीकि होने लगे। एक के बाद एक! और यह परिवर्तन भी इतनी शीघ्रता से हुआ कि क्या कहें? धर्म ने मर्म को घट घट छानना प्रारम्भ किया और घोषित पियक्कड़ों की भी कतारें लगती रहीं अमरता की आस में! दो बूंद, ज़िन्दगी की!

किन्तु यह परिवर्तन भी एक सीमा तक ही स्वीकार्य था। जहाँ एक बड़े समूह में सभी नर थे तो वहीं कुछ नराधम अभी भी बचे रह गए! डिटाल वाले एक कीटाणु की भाँति। अब वे कहाँ जाते भला? १०० प्रतिशत तो कुछ भी नहीं ना? खैर खुदा जब हुस्न देता है, नजाकत आ ही जाती है! लगने लगे मजमे! नाचने लगे जमूरे! अलग अलग तान, अलग अलग सुर और अलग अलग मैदान! युद्ध क्षेत्र, कुरुक्षेत्र कहीं पीछे छूट गया! ब्लाकास्त्र नराधमों को नरक में डालने का अचूक अस्त्र बनता चला गया।

(क्रमशः)

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