Friday 6 September 2019

'चन्द्र तुम छलिया बड़े'!

प्रयत्न का सौंदर्य,
चींटी के जीवन में देखो
जीवन चलायमान है!

देखो नव अङ्कुर को
पवन वेग हाहाकार
उड़ते महल,
प्रचण्ड झञ्झावात में
अङ्कुर से वृक्ष तक
सोपान ही सोपान हैं!

यद्यपि क्षुधा अमर
पर सींचते परास भर
हम दाने उपजाने को!
अग्नि धूम हूम हूम
तड़ तड़ तड़ित
धरा कम्पायमान है!

धोतियाँ फहरती हैं
भुजाएँ पसरती हैं!
सिर गट्ठर अनाज का
निज धर्म है, समाज क्या?
खेतों से थाली तक
सङ्घर्ष अविराम है!

गर्हित से गर्वित तक
असङ्ख्य श्मशान हैं!
गर्व है, गर्व है
प्रयत्न भासमान है!!

🙏🙏🙏

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