Saturday 21 September 2019

सङ्कर शङ्कर....!

सङ्कर को वायु पुराण के इसी वक्तव्य की सहायता से समझें तो यह क्षत्रिय इन्द्र के हविष्य में ब्राह्मण बृहस्पति के हविष्य मिलने की बात करता है। हविष्य को याज्ञिक अनुष्ठान में प्रयुक्त होने वाली आहुति से समझें तो दो भिन्न आह्वानों अथवा गुणों के एक होने से उत्पन्न अवस्था सूत अवस्था है। यहाँ तामस भाव का कोई वर्णन नहीं, सो त्याज्य होने का प्रश्न ही नहीं। देवगुरु बृहस्पति का उच्चतम आदर्श व देवेन्द्र इन्द्र के तेज की सार्वभौम स्वीकृति उस पद का सृजन करती है जिसे सङ्कर अथवा सूत कहा गया।

परम्परा से उन्हें धर्म क्या दिया गया? देवताओं, ऋषियों, व उच्च आदर्श प्रतिष्ठित राजन्यों तथा मनीषियों द्वारा प्राप्त सुवचनों को धारण करने का या आचरण में लाने का!

क्या सङ्कर अथवा सूत वह परम्परा नहीं जो ब्रह्मज्ञान व क्षात्रतेज को आदर्शों के अत्युच्च शिखर तक प्रतिष्ठित रखने की बात करता है? रामकथा भी प्रारम्भ में शिवजी ने उमा से कही थी नऽ? कैलाशवासी शङ्कर? सबसे निराले?

होल्ड, होल्ड.....अब कोई लाठी मत भाँजने लग जाना हम पर! 🙂

गरीब मनई हूँ मालक! 😁

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