Sunday 16 June 2019

कभी आपका, कभी काफ्का!

विवाह को सँस्थानिक वेश्यावृत्ति कहने वाले महाज्ञानियों को समर्पित।
***

कभी ये आपका और कभी, काफ्का का खाते हैं
बड़े खुर्राट ज्ञानी हैं, अकल पिछवाड़े से लाते हैं।

सनक ऐसी कि कर दें ख़ाक, जो इनकी हुकूमत हो
वहम ऐसा कि ये दुनिया, अभी ये ही चलाते हैं।

चुनांचे एक लम्हा, खुद की बेगम तक नहीं छोड़ें
कहेंगे आधुनिक हैं, दोस्तों को भी खिलाते हैं।

बड़ा जाहिल है, सोता ही नहीं है बाप के बिन तू
हमें ही देख, हम तो बाप को संघी बताते हैं।

उछलकर चढ़ गया गप से, बता तू माँ की गोदी में
हमारे घर तो माँ को बाप की, कट्टो बताते हैं।

रहें क्यूँ गोटियाँ नीचे, इन्हें ये भी शिकायत है
सो उसकी जद़ बढ़ाने को, ये थैरेपी कराते हैं।

No comments:

Post a Comment