Monday 25 March 2019

उन मित्रों को सम्बोधित जो किसी भी कारणवश नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को स्वीकृति नहीं प्रदान करते हैं।

मित्रों!

आपने लाखों बार ऐसे वक्तव्य सुने होंगे व मानते भी होंगे कि मित्रता में किसी भी प्रकार की राजनीति हेतु कोई स्थान नहीं हुआ करता। किन्तु यह मैं आपसे ही जानना चाहूँगा कि...ऐसा कोई भी व्यक्ति जो भारतवर्ष में रहता हो व स्वयँ को आत्मा से भारतीय मानता हो, वह कैसे किसी ऐसी सैनिक कार्यवाही का विरोध कैसे कर सकता है जो किसी सम्प्रभु राष्ट्र की अस्मिता व एकता पर मँडराते काले बादलों को छिन्न-भिन्न करने हेतु किया गया हो!

यह एक ऐसा पत्र है जिसे मैं कई वर्ष पूर्व में ही लिख देना चाहता था। किन्तु अब जबकि भारतीय लोकतान्त्रिक अस्मिता का महापर्व 'लोकसभा चुनाव २०१९' मात्र कुछ दिन दूर है तो मुझे लगा कि यह पत्र आप तक पहुँचना ही चाहिए।

मैं और आप एक दूसरे को सम्भवत: चेहरों से नहीं जानते। न आप और मैं एक साथ ही रहते हैं। मैंने व आपने कभी एक कप चाय भी साथ साथ बैठकर नहीं पी। न तो हमने सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हाट्स एप्प व हजारों अन्य ऐसे माध्यमों पर देश, दुनिया, जीवन या अन्य किसी मुद्दे पर घण्टों चर्चा ही की है। न मैंने आपको अपने परिवारजनों से मिलवाया है, न तो आपके किसी पारिवारिक कार्यक्रम में मैं कभी सम्मिलित हुआ हूँ। न मेरे किसी सुख में आप मेरे साथ थे न तो आपके किसी दु:खद क्षण में मैं आपके साथ था!

ऐसा नहीं कि यह पत्र लिखना इतना सरल है, किन्तु मुझे लगता है कि इसे लिखना ही चाहिए, सो मैं इसे लिख रहा हूँ!

कुछ वर्षों पूर्व जैसा कि मुझे स्मरण होता है, सोशल मीडिया पर आपने देखा होगा कि किस प्रकार गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग से लेकर मित्रता, प्रेम व अन्य भावनात्मक सन्देशों की भरमार रहती थी। फिर कुछ समय पश्चात् इन सन्देशों का स्थान काँग्रेस के दमनकारी व घोटालायुक्त 70 वर्षों के इतिहास सम्बन्धी सन्देशों ने ले लिया। बीच बीच में योग, सकारात्मक सोच, व मित्रता सम्बन्धी सन्देश भी आते रहे और इन सबका उत्तर देना व टिप्पणी करना किसी भी व्यक्ति हेतु सहज, सरल था।

कुछ समय पश्चात् इन स्थानों पर मोदी सरकार की उपलब्धियों से सम्बन्धित सन्देशों का आना-जाना प्रारम्भ हो गया जिसके उत्तर में अथवा टिप्पणी स्वरुप आप ने एक स्माइली दे दिया अथवा उसे देखकर यूँ ही आगे बढ़ चले। यदि मैं सही हूँ तो आप भी ऐसा अवश्य मानते होंगे कि प्रत्येक व्यक्ति अपने राजनीतिक समझ व मन्तव्य हेतु स्वतन्त्र है व स्वयँ मैं भी इस परम्परा का वाहक हूँ जो मानते हैं कि 'जियो और जीने दो!'

कुछ दिनों पश्चात् आपने देखा होगा कि इन्हीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे सन्देशों की बाढ़ आ गयी जिसमें किसी मुस्लिम व्यक्ति के साथ हुए दुर्व्यवहार की सूचना होती थी व यह स्पष्ट निर्देश भी होता था कि न केवल हिन्दू समाज, अपितु यह देश तक मुसलमानों हेतु असुरक्षित हो गया है। यहाँ तक कि सँयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर यह बताया गया कि मुसलमान भारतवर्ष में असुरक्षित हैं! यदि आप यह सोच रहे थे कि यह मात्र पीड़ित को न्याय दिलाने हेतु किए गए उपक्रम थे व आप इन सन्देशों को आगे बढ़ाने में अपना छोटा सा योगदान भर कर रहे थे तो मैं आपको स्मृति दिला दूँ कि वास्तव में आप ऐसा नहीं कर रहे थे! वास्तव में आप उन्हें सँबल प्रदान कर रहे थे जो भारतवर्ष की एकता व अखण्डता को नित्य प्रति भङ्ग करने के प्रयासों में निरन्तर लगे हुए थे।

प्रत्येक घटना के पश्चात् रैलियाँ निकलतीं, बन्द का आह्वान किया जाता, समाचार पत्रों में लम्बे लम्बे लेख लिखे जाते, भारत की बर्बादी के नारे लगाए जाते, टेलीविजन की स्क्रीन काली कर दी जाती व असहिष्णु हिन्दू समाज की भर्त्सना की जाती। सभी का खून शामिल है यहाँ कि मिट्टी में...किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है जैसी कविताएं भी जहाँ तब इस समय का प्रतिनिधित्व कर रही थीं वहीं हम आप जैसे सरल व्यक्तियों को अपमानित करने का पूरा प्रपञ्च रचा जा रहा था।

ऐसे समय में उत्तर देना कठिन होता जा रहा था। मैं स्वयँ भी फोन से दूर रहने का प्रयास करने लगा था व अपने मित्रों से बचने बचाने लगा था।

अगले कुछ दिनों तक आपने यह भी देखा होगा कि ऐसे सन्देशों की बाढ़ बढ़ती जा रही थी जिसमें हिन्दू प्रतीकों का अपमान किया जा रहा था व यह भी बताया जा रहा था कि किस प्रकार नरेन्द्र मोदी सरकार मुस्लिमों के अधिकारों का हनन कर रही है व इस सरकार को हटाकर ही मुस्लिम अधिकारों की रक्षा की जा सकती है।

यह कुछ कुछ वैसा ही था जो नित्य प्रति आपको ऐसे सन्देशों द्वारा यह बता-दिखा कर इस बात का प्रयास कर रहा हो कि उनकी कही बातें अक्षरश: सत्य हैं व आप यदि उनकी बातों का समर्थन नहीं कर रहे तो आप मुसलमानों के हितों की अनदेखी कर रहे हैं व आप सेक्युलर नहीं अपितु छद्म वेश में भगवा आतङ्कवादी हैं। मैं उस समय यह कहना चाहता था कि नहीं...वे ग़लत हैं अथवा वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर हिन्दू विरोध का स्टीरियोटाइप बना रहे हैं जो हमारी एकता अखण्डता के पक्ष में तो कतई नहीं पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राह में अवश्य स्मरणीय है।

किन्तु तब यह कहना अपेक्षाकृत कठिन से कठिनतम होता गया और मुझे यह कहना पड़ा कि कृपया मुझे ऐसे सन्देश न भेजें व सम्भवतः आपने भी ऐसे लेखों व लेखकों से दूरी बनानी प्रारम्भ कर दी जो इन कथ्यों को चिल्ला चिल्ला कर गा रहे थे। मैंने अपने ऐसे कुछ मित्रों को यह समझाने का प्रयास भी किया था कि ऐसा कहीं नहीं है जैसा ये डिजाइनर लोग अपने वक्तव्य में दावे कर रहे हैं। हम तुम इस तथ्य की हवा निकालने हेतु पर्याप्त हैं कि भारत असुरक्षित है या हिन्दू आततायी हैं! ऐसे कुछ मित्रों को मेरी बात समझ में भी आयी किन्तु ऐसे जन अत्यल्प थे।

मेरे अपने कुछ मित्रों ने तब यह कहा कि छोड़ो भी.. मित्रता में राजनीति का कोई स्थान नहीं होता और तुम भी यह सब बन्द करो! किन्तु तब मैं सचमुच यह नहीं समझ पा रहा था कि वे ऐसा कैसे कह सकते हैं जबकि वह प्रत्येक क्षण उन कार्यों में लिप्त थे जिन्हें एक भारतीय होने के आधार पर मैं त्याज्य समझता था। मैं ऐसे किसी भी व्यक्ति को मित्र भाव से कैसे देख सकता था जिसे मेरे मनोभावों से कोई प्रयोजन ही न हो व जो समय समय पर निर्दोष होने के मेरे तथ्य के विपरीत मेरे हाथ खून से रंगे होने का स्मरण करा रहा हो? एक अच्छा मित्र मिलना सहज नहीं, अत्यन्त दुर्लभ है और अच्छे मित्र तो उन बातों पर भी सहज होते हैं जो बहुधा विपरीत हुआ करती हैं? क्या ऐसा नहीं? तो क्या यह एकमात्र मेरा कर्त्तव्य है कि मैं मित्रता का मान रखने हेतु उन विचारों का समर्थन करूँ जो मेरे विराट हिन्दू समाज को असहिष्णु कहना चाहते हों व मेरे सम्प्रभु राष्ट्र को इतने आघात दे कर भी जिनका मन नहीं भरा हो और जो भारत तेरे टुकड़े होंगे को उचित ठहराते रहे हों? यह एक गम्भीर प्रश्न है, किसी वाक् चातुर्य के अनन्तर!

यहाँ इस बिन्दु पर मैं यह भी अवश्य कहना चाहूँगा कि ऐसी किसी भी परिस्थिति में यदि आप मुझे अपने साथ देखना चाहें जो आपके लिए कष्टप्रद हो रहा हो व जैसा मेरे साथ हो रहा था तो विश्वास करें , न केवल मैं अपितु ऐसे लाखों जन आपके साथ हैं जिन्हें आपके सुःख दुःख से समान प्रयोजन है, व जो भारतवर्ष को अपनी शिराओं में बहता रक्त मानते हैं। कोई कठिनाई नहीं कि आप हम हजारों लाखों किमी दूर हैं, भारतीय और भारतीयता का यह वो सम्बन्ध है जिसमें मैं व आप निबद्व हैं। बस मैं यह नहीं जानता कि इस भावना को और अधिक, करोड़ों जनों तक मैं एक अकेले कैसे पहुँचाऊँ?

हम सब इस समय एक ऐसे राजनीतिक बहस सम्बन्धी परिदृश्य में हैं जहाँ मैं व आप एक दूसरे से अपनी पार्टी व नेता विषयक हजारों की संख्या में प्रश्न करने की क्षमता रखते हैं। जैसे कि हमारे यहाँ यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं, राम मन्दिर क्यों नहीं बन रहा, किसानों को उनकी फसल का अधिकतम लाभ क्यों नहीं मिल रहा, जनसंख्या नियंत्रण कानून क्यों नहीं, कश्मीर से धारा ३७७ व ३५ क क्यों नहीं हटायी जा रही, भारत की बर्बादी के नारे लगाते जन को दण्ड क्यों नहीं, सबरीमाला जैसी हमारी परम्पराओं का सम्मान क्यों नहीं, आरक्षण सम्बन्धी विसङ्गतियाँ कब तक, सेना पर प्रश्नचिह्न उठाने वालों को समर्थन क्यों, सेना प्रमुख को गुण्डा कहने की स्वतंत्रता कब तक, कश्मीर में पत्थरबाजी का समर्थन कब तक, मुस्लिम तुष्टिकरण कब तक, कश्मीरी पण्डितों का पुनर्वास क्यों नहीं, शिक्षा संस्थानों से वामपन्थी गिरोहों का सफाया कब तक, ओवैसी जैसे मानवता के अपराधी कब तक, एक परिवार के ही किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की बाध्यता कब तक आदि आदि!

आपके पास भी अपनी प्रश्नावलियाँ होंगी जो आपके हेतु उतनी ही प्राथमिकता रखती हैं जितना कि मेरा यह पत्र मेरे लिए, किन्तु इतनी दीर्घ प्रश्नावली छोड़ कर मैं आपसे मात्र तीन प्रश्न पूछना चाहता हूँ... उत्तर स्वयँ भी दें व अन्य जनों से भी पूछें!

१:- क्या आप यह मानते हैं कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपानीत गठबन्धन सभी समूहों हेतु समान अवसरों का सृजन करते हुए, बाह्य व आन्तरिक सुरक्षा पर दृष्टि बनाते हुए, जनसामान्य के जीवन स्तर को उच्च बनाने का प्रयास करते हुए...विगत् पाँच वर्षों में भारतवर्ष को विश्व पटल पर स्थापित करने में सफल हो सका है?

२:- क्या आप यह मानते हैं कि मुस्लिम तुष्टिकरण की जो राजनीति विगत् वर्षों में भारतवर्ष का दुर्भाग्य बन कर उसे भीतर से खोखला करती जा रही थी व जिसका चरम कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के साम्प्रदायिक हिंसा बिल के रूप में भारतीय समाज पर पड़ने वाला था...भारतीय समाज विशेष रूप से हिन्दू वर्ग उस जीर्ण शीर्ण अवस्था से किञ्चित् भी प्रगति कर पाए हैं?

३:-अन्त में, क्या आप अपने बच्चों के हाथों में ऐसा देश दे कर जाना चाहेंगे जहाँ की बहुसँख्यक आबादी आपकी बहन बेटियों को मुसलमान बनाने हेतु अपहृत कर ले जाए व आप वहाँ की न्याय व्यवस्था से निराश्रित हो स्वयँ को गोली मार देने का अनुरोध कर रहे हों?

इन प्रश्नों के उत्तर मैं स्वयँ भी दे देता, किन्तु मैं यह आपसे जानना चाहूँगा। स्पष्ट हाँ या नहीं से इतर इनके कोई उत्तर नहीं। किताबों व गल्प के अतिरिक्त ऐसी स्थिति मात्र एक भ्रम है, जहाँ किसी आदर्श समाज का कोई अस्तित्व होता हो। किन्तु उस आदर्श समाज के हेतु कर्मरत रहने का आह्वान सभी श्रेष्ठ जनों ने एक स्वर में किया है!

आप भी उस समाज हेतु ऐसे प्रयत्न करेंगें ऐसी कामना के साथ यह पत्र समाप्त करता हूँ व आशा करता हूँ कि लोकतन्त्र के इस पर्व में प्रत्येक जन अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करेंगे व भारतवर्ष के भविष्य की रूपरेखा निश्चित करने में अपना योगदान अवश्य देंगे।

माता भूमि पुत्रोऽहँ पृथिव्या!
वन्दे मातरम् 🙏

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