Monday 22 October 2018

एक रात की लोकल - १

ग्रामीण क्षेत्रों से जो मित्र हैं, वो बखूबी समझते होंगे कि रात्रि में दूर दराज की यात्रा कितनी कठिन हो सकती है यदि अपने तईं कोई वाहन ना हो! उस पर समय यदि सर्दियों का हो तो बस राम ही राखें। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः सायं सात-आठ बजे ही निद्रा देवी का आगमन प्रारम्भ हो जाता है, जो नौ दस बजे तक पूरे गाँव को गहरी नींद में पहुंचा दिया करती हैं। सो हाल फिलहाल की एक घटना आप सब से साझा करना चाहता हूँ जब इस भूमिका से दो चार होने का अवसर प्राप्त हुआ था।

सुबह सुबह फोन की घंटी बजी तो नींद में विघ्न पड़ा। आंखें मींचकर किनारों से स्क्रीन देखने की कोशिश ही कर रहा था कि कॉल डिस्कनेक्ट हो गयी। मन के अंदर से आवाज आयी हो न हो, फोन पिताजी का होगा! क्योंकि सुबह सुबह फोन करने की पिताजी की आदत से सारा घर परिचित है। पिताजी गाँव में रहते हैं और सुबह नित्य कर्म के बाद और नाश्ते से पूर्व उनका प्रथम कार्य हम भाई बहनों को फोन करना ही होता है। बड़े भाई साहब की आदत जहाँ सुबह जल्दी उठने की है, वहीं मेरी कोशिश रहती है कि नौ या दस भी बज जाएँ तो भी नींद स्वेच्छा से ही खुले, न कि किसी बाह्य कारक से। बहनें ससुराल में हैं तो वैसे भी अपनीअपनी सुविधानुसार मायकेवालों से बात करती हैं, लेकिन मुझे और बड़े भैया को पिताजी के फोन की आदत है। बड़े भैया जहाँ पिताजी की कॉल का जवाब तुरन्त दिया करते हैं वहीँ मैं अपेक्षाकृत थोड़ी देर में। खैर पिताजी के पास इसका भी उपाय है। पहले मुझे फोन करने के बाद बड़े भैया को फोन करते हैं ताकि जब तक मेरी कॉल वापस आए, बड़े भैया से बातचीत हो चुकी हो। इसी क्रम में आज की कॉल पर पिताजी ने सूचना दी कि खेतों में बुवाई का कार्य अब प्रारम्भ होना है, इसलिए खाद बीज की व्यवस्था कर दी जाए। मैने भी रात्रि में गाँव आने का आश्वासन दे अन्य आवश्यक कार्यक्रम निपटाने की तरफ कदम बढ़ा दिए।

मेरा कार्यक्षेत्र गांव से 70-80 किमी दूर है सो आने जाने हेतु एकमात्र साधन भारतीय रेल सुलभ और सुरक्षित जान पड़ता है। मेरे गांव का नजदीकी रेलवे स्टेशन भी 4 किमी दूर है और बस स्टैंड 8 किमी। सो शाम की ट्रेन जो आमतौर पर सात बजे तक मेरे स्टेशन पहुंचा देती है, उसी से जाना निश्चित हुआ। कारण रात्रि बेला में ग्रामीण अंचलों मे आवागमन की सर्वसुलभ इकाई ऑटो(सहज भाषा में टम्पू) देर रात मिलना दुष्प्राप्य है। अतः आवश्यक साजोसामान के साथ तीन बजे ही स्टेशन पहुंच गया। ट्रेन आने में घंटे भर की देरी की सूचना मिली तो वहीं के एक मित्र से मिलने की इच्छा से बाहर की ओर चला आया। मित्र से मिलकर लौटने में की गई कुछ मिनटों की देरी का दंड ट्रेन के चले जाने की सूचना के रूप में मिला। अगली ट्रेन का समय सात बजे और पहुंचने की संभावना आठ नौ बजे। एक प्रसिद्ध कहावत कहूँ तो जे के खाति अलगा भईनी उहे परल बखरा! मने जिस चीज से बचने की कोशिश की वही हिस्से में आए। देर रात्रि में घरवालों को परेशानियों में न डालने की इच्छा पर तो पानी फिरा ही, स्टेशन से घर तक की यात्रा पैदल करने की इच्छा से ही मन में सिहरन हो गई। खैर ट्रेन आने और मेरे स्टेशन तक पहुंचने को एक लाइन में समेटते हुए मैं अपने गंतव्य स्टेशन तक पहुंच गया। ट्रेन में सहयात्री के नाम पर मिले एक बुजुर्ग, जिनका घर रेलवे स्टेशन के पास ही है। साथ ही मुझे मिला कोई बेहद खास, जिसके यहाँ इस वक्त होने की दूर दूर तक कोई सम्भावना नहीं थी, और जिसका निवास स्थान मेरे गाँव से आधा मील आगे का था।

(जारी)

No comments:

Post a Comment