इक नन्हीं मुन्नी सी परी
आँखें उसकी जादू भरी!
भोर भये ही उठ जाती है,
उठती नहीं अम्मीं उठाती है!!
वक्त से पहले जाग उठी है,
बाँध दामनी आह उठी है!
लट उलझी थी सुलझाती है,
खुद को जानें क्या समझाती है!!
आँखें मल अलसाया बचपन,
वुजू करे कुम्हलाया बचपन!
कैसी पीड़ा है क्या कहिए,
उम्र कहाँ कि सजदे करिए!!
मस्जिद का भोंपू बोला है,
उफ़ उसका बचपन डोला है!
चाँद का टुकड़ा कहने को है,
अभी नमाज़ें पढ़ने को है!!
नन्हीं नन्हीं सी हथेलियाँ,
वहाँ लकीरें या पहेलियाँ!
लोगों से वह जुदा कहाँ है,
पूछा उसनें खुदा कहाँ है!!
भोली सी है सीधी सी है,
अब भी नज़र उनींदी सी है!
अम्मी जबरन मुँह धोती है,
वह बेचारी रो देती है!!
क्या मजहब में बच्चा होना,
गुड्डा गुड़िया हँसना रोना!
अल्ला से पूछेगी जाकर,
क्या पाते हैं उसे जगाकर!!
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