Wednesday 6 February 2019

किनारे पूछते तो हैं?

जब तुम्हारे अपने अफसानों से
भर जाए तुम्हारा मन!
और तुम बैठो
जब कभी
नीम़ अंधेरी
काली रातों में
किसी नीम के ठौर
घुटनों में सिर दिए!!

तो
तुम्हारा वह कुम्भीपाक
फिर सिर उठाएगा
तुम्हारे चारों ओर!
और तब उसकी गूंज
ढम ढम करती बजेगी
तुम्हारे कानों के परदों पर!!

जिसे हजार रातों तक
तुम अनसुनी करते आए!
जिन सिसकियों को
धता किए
तुम सुनते रहे थे
ग़ज़ल मुकरियों की
हसीन किस्सागोई
किसी हसीन सपने में गुमसुम!!

और तभी
समय के थैले से
वो हज़ार सुबहें नुमाया होंगी
जब तुम कहीं जाने को तैयार!
और जानें किसकी
हसीन कल्पनाओं में खोए तुम
सदा ही भूले
वो छालों भरी उँगलियाँ
जो गर्म तवे पर
तुम्हारी रोटियाँ सेंकतीं थीं!!

मेरा यकीन कर लो
तब अपने घुटनों से!
तुम अपना सर भी
निकाल न सकोगे!!

क्योंकि तब
उस सर पर
बोझ होगा तुम्हारे रंज का!
तुम्हारे द्वेष का
तुम्हारे दर्प का
और मेरी पीड़ा का भी!!

पर,
मेरी देह
तब भी!
महका करेगी
सात आसमान पार!!

क्योंकि
यह तो!
तुम भी जानते हो
कुसूरवार कौन!!
.....

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