Tuesday 9 October 2018

चिरई तेरो पाँख

ये
पाँख!
चिरईया
मुझको दे!!

कि उड़ जाऊँ
मैं नगर नगर!
बन बन घूमूँ
चहकूँ गाऊँ!!

मैं उत्तर जाऊँ
उस हिम किरीट तक!
दक्खिन में
सह्याद्रि चूम लूँ!!

प्राची में सूरज,
को मिल लूँ
और प्रतीचि गाऊँ
मैं नाम पिया का!!

चोंच लगा लूँ
गङ्गा का जल!
पावन करूँ
तनिक अंत:स्तल!!

ये पाँख,
ओ चिरईया....मुझको दे!!

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