Saturday 15 June 2019

कोई निरपराध को मारे!

कैसा हठ है...!

सुन सकोगे तुम
मेरे मौन को?
अन्तःस्थल में जो
चुप श्वास लिया करती है?

अतीत के ये झञ्झावात
केवल तुम्हें नहीं व्याप्त!
पथरीली चट्टानों पर भी
बूँदें गिरा करती हैं!!

स्याह से स्निग्ध की
यह यात्रा ही जीवन है!
स्वयँ से कही बातें
वे आत्माएँ सुना करती हैं!!

आयु आधी अधूरी
पर गाँठ में पूरी!
जो कारी कमरिया में
हीरे जड़ा करती है!!

छोड़ दो यहाँ एक
दीर्घ निःश्वास!
किसी से क्या कहना
मृत्यु सब कहा करती है!!

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