Saturday 25 May 2019

मन की बात -१

आदरणीय प्रधानमन्त्री जी!

क्या हम सब इस अद्भुत विजय का उत्सव इसी भाँति सहज भाव से मनाएँ? आपकी यह प्रचण्ड विजय क्या इस बात की द्योतक नहीं कि जनमानस आपके द्वारा किए जा रहे कार्यों से यदि सन्तुष्ट नहीं तो असन्तुष्ट भी नहीं? पलड़े कुछ डाँवाडोल हैं किन्तु आप सदा ही सही तौल करेंगे ऐसी आशा का स्पष्ट जनादेश ही तो है यह?

विजय सम्बोधन में आपने कहा...आप बदनीयती से कार्य नहीं करेंगे। सुखद व अनुकरणीय है यह वक्तव्य... किन्तु हमें इसके स्पष्ट परिणामों की व्याकुलता से प्रतीक्षा रहेगी कि क्या भारतवर्ष को यहाँ कोई दूसरा गाँधी मिल गया है? स्वतन्त्रता सङ्घर्ष में १९४२ से १९४७ के आप द्वारा उद्धृत उस कालखण्ड में धनी-निर्धन तथ्य के इतर और भी अनेक मुद्दे थे जिन्हें हल करने की मोहनदासी परम्परा समाज को कम से कम अब स्वीकार्य नहीं। आपसे अधिक परिपक्वता की आशा है क्योंकि हम यह मानते हैं कि इस सतत् परिवर्तनशील विश्व में किसी बिन्दु पर ठहराव सदैव आत्मघाती ही होता है चाहें वह मोहनदासी परम्परा ही क्यों न हो!

यदि राम व राम के आदर्शों की बात करुँ तो सम्भवतः मैं त्याज्य हो जाऊँगा आपकी दृष्टि में किन्तु यह आप भी समझते ही होंगे कि राम ही वह आलम्ब हैं जिनके चारों ओर किसी विष बेल सी लिपट कर मोहनदासी परम्परा फलती फूलती रही व कालान्तर में राम के अस्तित्व को यादृच्छया ढ़क कर ओझल कर दिया।

यह स्पष्टत: मेरा और आपका सँवाद है। आप सदा सदा उस विराटता का अनुभव करें जो विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् जैसी अवधारणा से अवगत कराता है किसी यहूदी, इस्लामी, ईसाई या अन्य किसी भी मत मतान्तर की असहिष्णु परम्पराओं से इतर! यह भारतवर्ष का दुर्भाग्य कि सेक्युलरिज्म की मलाई खा-खा थाली में छेद करने वालों को स्वतन्त्रता पूर्व भी ढूँढ ढूँढ कर सम्मानित किया गया जिसके फलस्वरूप उनकी सन्ततियाँ आज भी बहुसङ्ख्यकों की छाती पर चढ़ मूँग दलना अपना अधिकार समझती हैं।

किसी अन्य आकाङ्क्षा से इतर यहाँ मेरा एकमात्र प्रयोजन बहुसंख्यकों के मतान्तरण में लगी शक्तियों के प्रतिकार से है जिस ओर आप का ध्यानाकर्षण मुख्यधारा की उन शक्तियों को सम्बल प्रदान करेगा जो यथाशक्ति उनके प्रतिकार में लगे हुए हैं। दिन दूनी रात चौगुनी गति से जनसङ्ख्या वृद्धि करते इस्लामी समूह तो हैं ही गजवा-ए-हिन्द की ताक में!

आप को सलाह तो क्या दूँगा, हाँ यह मेरी आकाङ्क्षाएँ अवश्य हैं व यह आशा भी कि प्रचण्ड बहुमत के यह पाँच वर्ष भारतवर्ष हेतु भारतीय मूल्यों के उत्कर्ष के वे स्वर्णिम पाँच वर्ष होंगे जिन्हें आपका नेतृत्व प्राप्त करेगा।

इस जनादेश हेतु असङ्ख्य शुभकामनाएँ।

जय श्री राम 🙏

Friday 24 May 2019

चुनाव पश्चात् रवीश २.०

जात कुमार पाण्डेय जी...!

सही अर्थों में हार तो आप तभी गए थे जब आप जनमत को ट्रोल, अन्धभक्त आदि कह कर उपहास किए जा रहे थे। अपने लेखों व विचारों का सम्यक् अवलोकन करेंगे तो आप पाएंगे कि कबीलाई मुसलमानों व वामपन्थी गीदड़ों के झुण्ड को आप भारतवर्ष की जनता समझ रहे थे। जिस पत्रकारिता की ओट ले आपने ३०० किलोमीटर का लेख लिखा है, उस पत्रकारिता को रसातल में पहुँचाने के स्पष्ट रूप से दोषी हैं आप!

निस्सन्देह आपके कुतर्कों की शृङ्खला से कुछ व्यक्तियों का भला हुआ जिसकी दुहाई आपने अपने लेख में दी है तो मैं यह कहूँगा कि आप उस व्यक्ति की भाँति हैं जिसने दस नए पौधे रोप कर पुराने १०० बाग कटवा दिए या मैं यहाँ जेबकतरों के उस झुण्ड की भी बात करूँगा जिनमें से एक सदस्य किसी व्यक्ति की जेब काट कर चला जाता है और झुण्ड के अन्य सदस्य उस व्यक्ति को दया भाव दिखाते हुए अपने ही साथी को गालियाँ दिए जाते हैं।

मैं भक्त हृदय हूँ, सनातनी भी...सो तटस्थ हो कह रहा हूँ कि आपने पत्रकारिता के सिरमौर होने की हनक में जो कुछ भी किया है उसका मूल्याङ्कन पीढ़ियाँ ही करेंगी। विगत् पाँच वर्ष का आपका अभिनय सबने देखा है व आगामी पाँच वर्षों तक भी देखेंगे ही।

स्वयँ को पीड़ित दिखा सहानुभूति बटोर लेने की पाण्डेय जी की यह चाल भी अच्छी लगी। अप्रासङ्गिक होते रवीश जी की प्रासङ्गिक बने रहने की इस जीवटता को भी नमन करो मितरों! इनके वाम को भी राम राखें!

🙏