राऽऽऽऽऽम्!
एकाकी?
बन्धु...,
राम कभी एकाकी नहीं होते!
राम के साथ हुआ करते हैं, कोई सौमित्र!
......कोई हनुमान, कोई सुग्रीव।
कौशल्या, कैकैयी, सुमित्रा
कहीं निषाद, कहीं भरत, कहीं शत्रुघ्न!
कोई नल-नील, कोई जाम्बवान, कोई अङ्गद..
एक वशिष्ठ 'वसिष्ठ'!
एक विश्वामित्र, एक दशरथ।
राम के होने के अनेक हेतु हैं!
कहीं जनस्थान, कहीं ताटका, कहीं सुबाहु, कहीं मारीच!
बालि सह घनघोर रवण करता रावण...
राम के चरण पर ही शान्त होगा, किन्तु!
राम के होने न होने में,
सीताओं का होना भी
बड़ा आवश्यक है!
राम को गढ़ते हैं,
एक जनक, एक सुनैना।
प्रान्तर उपत्यकाओं के
वे कोल, भील, वानर, भालू!
वन, उपवन, नदी, पर्वत
कितने अगस्त्य, लोपामुद्राएँ
लङ्का, गिलहरियाँ, अयोध्या!
सब मिलकर रचेंगे वह 'राम'
जो होगा सबका उद्धारकर्ता
और जिसकी न्यायप्रियता
युगों पाऽऽर....सुनी जाएगी, गुनी जाएगी।
(चित्र सङ्कलन विभिन्न स्रोतों से आभार सहित)
चैत्र पूर्णिमा, मङ्गलवार
भारत-२०७८ विक्रमी
No comments:
Post a Comment