Monday 15 April 2019

आसन्न मृत्यु पथ....दिखता है!

और तब मैंने देखा!

स्वयँ को लथपथ
स्वयँ के रक्त में
जबकि मुझे भान था
मेरे हेतु कवच है
यह 'तुम्हारा' 'मेरा' होना!

चुनाव चल रहे हैं। बयानवीर बयान दे रहे हैं। लोकतन्त्र अभूतपूर्व रूप से सशक्त हो रहा है।

फेसबुक, व्हाट्स एप्प, सम्पूर्ण भारत चुनाव मय है। अपने लोकतन्त्र के सजग प्रहरियों को चुनने की बेला जो है। कुछ ऐसे प्रहरियों को जिनके घनघोर अनुयायी...जी हाँ अनुयायी ही कहूँगा...क्योंकि भक्त, अन्धभक्त, अण्ड, भीमटा, मनुवादी, दलाल, मियाँ, कटुआ, काँग्रेसी आदि सञ्ज्ञाएँ तो सब जान ही रहे हैं... ये दिन को रात करने में भी नहीं हिचक रहे हैं। लक्ष्य केवल एक....वरण हो विजयश्री का! येन केन प्रकारेण!

लक्ष्य भेदन के प्रति यह समर्पण सराहनीय है। 'अपने नेता'..... (शब्द पर भार लें).... 'अपने नेता' को चुनने, उसे जिताने को जो भी बन पड़े...ये अनुयायीगण जी जान लगाकर किए जा रहे हैं....सब कुछ तुझ पर अर्पण!

और कौन हैं  यह 'अपने नेताजी'? वही जो अपनी 'जाति' के हों!

ब्राह्मण हैं तो वह ब्राह्मण के वोट पाएगा, नाई हैं तो नाई के।

किन्तु एक पेंच.... मुस्लिम हैं तो मुसलमान बोरी भर भर वोट करेगा! केवल उन्हीं को! यहाँ कोई उलटबाँसी नहीं!

और तो और!
भाई ....महा-गठबन्धन तक कर डाले गए हैं, एक समान विचारधारा के नाम पर! एक शिकार के नाम पर! मिलजुलकर खेत कर देंगे....और क्या?

क्या समान विचारधारा का अर्थ एक ही व्यक्ति के विरुद्ध झुण्ड बना लेना है? तब तो इसे शिकारियों का समूह कहना अधिक उपयुक्त होगा?

वर्षों तक....स्वेद, रक्त बहा जिन शलाका पुरुषों ने अनेक परित्यक्त समाजों को अग्र-पङ्क्ति में खड़े होने का साहस दिया, उनके सङ्घर्ष को महागठजोड़ की बलि चढ़ा सत्ता प्राप्ति करने का यह अद्भुत नाटक नहीं देख पाते आप?

अन्याय, अत्याचार, जातीय सङ्घर्ष, वर्ग सङ्घर्ष व इन सबसे बढ़कर अपने क़बीलाई धार्मिक उन्माद को खाद पानी दे कर, उसकी लहलहाती फसल काटने को आतुर 'हरे वायरस' का यह 'गजवा-ए-हिन्द' का अपूर्ण किन्तु बहुप्रतीक्षित स्वप्न नहीं देख पाते आप? 'भीमराव रामजी आंबेडकर' को 'रावण' व 'मायाबत्ती' जैसों की ऐनक से ही देखते हैं आप?

मनुस्मृति को जला जला कर राख कर दें...सत्ता पाने को यही सब चलेगा? मित्र....कभी आसमानी किताब पर अपने भीम-मीम या एम-वाई युति में स्वस्थ ही सही...पर आलोचना करने का साहस कर के देखिएगा!

न ऊधो का लेना, न माधो का देना! वे मुखर हैं! आप कब थे?

मैं प्रार्थना करता हूँ....!🙏

हे देश शङ्कर!

तू अभागे भारतों में वह विश्वास बन,
कि हुञ्कार उठे रावण मद मोचन का!
अभ्यर्थना पृथ्वी तनया कुमारिका की,
मैं क्षुब्ध हनुमत् का 'केवल प्रबोध' माँगता हूँ!!

ये अमानिशा है, दिनकर दे
अब रोम रोम, उज्ज्वल कर दे
तेरा हिरण्यमय, सवित तेज
'हर' कण कण में भर दे!

हे देश शङ्कर, हे देश शङ्कर
🙏